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नीम करोली बाबा के अनसुने किस्से, कैसे एक ही समय पर दो जगह रहे मौजूद

Fnd, देहरादून : देश-दुनिया में नीब करौरी (नीम करोली) बाबा के हजारों भक्त हैं. उत्तराखंड के नैनीताल का कैंची धाम हो या फिर उत्तर प्रदेश के मथुरा का वृंदावन, देश के कई हिस्सों में उनके मंदिर और तपस्थली भी मौजूद हैं. कैंची धाम में बाबा नीब करौरी महाराज भगवान हनुमान के अवतार के रूप में विराजमान हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीब करौरी महाराज को उनके परिवार के सदस्यों ने कभी सोते हुए नहीं देखा, वो रातभर जागा करते थे. नीब करौरी बाबा एक समय में दो जगह कई बार उपस्थित रहे. हरिद्वार पहुंचे नीम करौरी बाबा के एकमात्र वंशज उनके पोते धनंजय शर्मा ने ईटीवी भारत को महाराज की जिंदगी के कई ऐसे किस्से और कहानियां बताईं, जो सिर्फ उनके परिवार के लोग ही जानते हैं.
घर-परिवार को दिया महत्व: बाबा नीब करौरी महाराज के पोते धनंजय शर्मा पेशे से डॉक्टर हैं. हालांकि, अब वह रिटायर्ड हो चुके हैं. महाराज के जीवन के बारे में बात करते हुए धनंजय शर्मा बताते हैं कि वो व्यक्तिगत तौर पर गृहस्थ जीवन और सांसारिक जीवन को एक जैसा महत्व देते थे. लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां को कैसे निभाया और परिवार को कैसे चलाया जाता है, यह उनसे बेहतर शायद कोई नहीं जानता था.

घर से कई सालों तक बाहर रहने से पहले की जिंदगी हो या वापस घर आने के बाद, उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया. जब 13 साल तक वह किसी को नहीं मिले, तब पूरा परिवार बेहद चिंतित था. हमको लगा था कि शायद अब वह वापस नहीं लौटेंगे. लेकिन एक दिन एक गांव के व्यक्ति ने बताया कि उन्होंने महाराज को देखा है और उसी शाम वह घर वापस आ गए.

– डॉ. धनंजय शर्मा, बाबा नीब करौरी महाराज के पोते

डॉक्टर धनंजय शर्मा बताते हैं, इसके बाद दादी और बाबा (महाराज) के बीच काफी लड़ाई हुई. उसके बाद वह अपने परिवार की जिम्मेदारी को निभाना नहीं भूले. पूरे महीने कहीं भी रहने के बावजूद महीने की पहली तारीख को वह घर आते थे और घर के सभी जरूरी सामान और सभी से बातचीत करके उनकी जरूरत को पूरा किया करते थे. घर के छोटे व्यक्ति से लेकर घर के बड़े व्यक्ति तक हर किसी से उनकी जरूरत को पूछना, उनकी जिंदगी में शामिल था. हमें यह कभी नहीं पता लग पाया कि आखिरकार वह जब घर से बाहर निकले तो वह कहां रहे? उनके गुरु कौन थे? उनको सिद्धी कहां से प्राप्त हुई?

एक मजदूर ने लगाई डांट: बाबा नीब करौरी महाराज का जीवन कितना सादगी भरा और मिलनसार था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब लखनऊ में उनके बेटे का मकान बन रहा था, तब वह 10 दिन के लिए वहां पर रहने के लिए आए.

एक दिन देर शाम मैं बाबा (नीब करौरी महाराज) के लिए खाना लेकर गया, जब मैं वापस लौटने लगा तो काफी अंधेरा हो गया था. घर में काम करने वाले एक मजदूर (जिनको धनंजय शर्मा के पिता ही लेकर आए थे) ने महाराज को खूब खरी-खोटी सुनाई और जोर-जोर से चिल्लाते हुए उन्हें कहा कि आप कैसे बाबा हो, कैसे संत हो, आपको यह दिखाई नहीं देता कि आपका पोता अंधेरे में अकेला जा रहा है. वह उस मजदूर की डांट आराम से सुनते रहे और बाद में इस मजदूर से उन्होंने कहा कि जा उसको वापस ले आ. तब से लेकर कई सालों तक महाराज के कहने पर वह मजदूर परिवार का हिस्सा ही रहा. महाराज ने घर में साफ कह दिया था कि इसे (मजदूर को) कहीं नहीं जाने देना है.

– डॉ. धनंजय शर्मा, बाबा नीब करौरी महाराज के पोते –

एक ही समय में दो जगह पर मौजूद: डॉ. धनंजय शर्मा बताते हैं कि एक दिन बाबा नीब करौरी महाराज के आगरा वाले घर में परिवार के एक सदस्य की शादी थी. उस दौरान रात लगभग 12 बजे शादी से नाराज होकर महाराज कहीं चले गए. नाराजगी शादी में बनी मिठाई की किसी बात को लेकर थी. हल्ला करते हुए जब वह शादी से बाहर निकल गए तो लोगों ने शादी की सारी रस्में शांति से पूरी की, क्योंकि उनका गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता था.

डॉ. धनंजय बताते हैं कि, यह बात हमें बहुत समय बाद पता चली कि जिस दिन आगरा में शादी थी, उसी दिन महाराज उत्तर प्रदेश के सीनियर पुलिस अधिकारी ओंकार सिंह के घर लखनऊ में मौजूद थे. ओंकार सिंह ने अपने सभी कर्मचारियों से कह दिया था कि अगर उनसे (ओंकार सिंह) मिलने कोई आता है तो साफ मना कर देना क्योंकि उस दिन नीब करौरी बाबा शाम से ही उनके आवास पर मौजूद थे. ऐसे में एक तरफ उनकी मौजूदगी शादी में थी, तो दूसरी तरफ वह पुलिस अधिकारी के मेहमान बने हुए थे. पुलिस अधिकारी के घर से वह रात लगभग 10 बजे निकले, जबकि आगरा में हो रही शादी में वह शाम से लेकर रात 12 बजे तक शामिल थे. ये बात खुद उत्तर प्रदेश के सीनियर पुलिस अधिकारी ओंकार सिंह ने एक मंच पर बताई थी.

नहीं चाहते थे प्रशंसा: धनंजय शर्मा ने बताया कि बाबा नीब करौरी महाजार प्रचार-प्रसार से बहुत दूर रहा करते थे. उन्हें पसंद नहीं था कि लोग उनके कारण भीड़ लगाकर इकट्ठा हों या उनकी तस्वीर या उनके प्रवचन के बारे में कहीं कोई बात हो. वह कहीं भी जाते और अगर वहां उन्हें भीड़ का आभास होता तो, वह उस जगह को तुरंत छोड़ देते थे. मतलब उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि कोई उन्हें लग्जरी फील कराए. बेहद सादगी भरे जीवन के साथ उन्होंने जीवन जिया

एक समय की बात है, जब आगरा के एक व्यक्ति ने उनकी चालीसा लिखी, जिसे आज विनय चालीसा कहा जाता है. हालांकि वह व्यक्ति जानते थे कि महाराज को ये पसंद नहीं है. लिहाजा व्यक्ति ने सीधे तौर पर उनको चालीसा ना दिखाकर डाक के माध्यम से महाराज के पास भेजी, लेकिन जैसे ही महाराज को जानकारी हुई, उन्होंने चालीसा पढ़ी और फिर फाड़ दी. इसके बाद उन्होंने कहा कि इस तरह की बातें उनके बारे में ना लिखें, जबकि वह व्यक्ति एक बड़ी एजेंसी में अच्छी खासी पोस्ट पर थे.

उस व्यक्ति का न तो लेखन में रुचि थी और न ही ग्रंथ में, लेकिन अचानक से उनको यह आभास कहां से हुआ और लिखने का चलन कहां से शुरू हुआ, यह वह खुद नहीं जानते. हालांकि अब उन्हीं की लिखी हुई चालीसा सभी जगह चलन में है.

– डॉ. धनंजय शर्मा, बाबा नीब करौरी महाराज के पोते

40 साल तक रहे प्रधान: यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि बाबा नीब करौरी महाराज उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के अकबरपुर गांव के प्रधान के चुनाव भी लड़ चुके हैं. एक या दो बार नहीं बल्कि 40 साल तक निर्विरोध गांव के प्रधान रहे. धनंजय शर्मा बताते हैं कि जब भी प्रधान का चुनाव होता, तब गांव वाले उन्हें सर्वसम्मति से अपना नेता मान लेते थे.

कैंची धाम के अपग्रेडेशन से खुश हैं धनंजय: नीब करौरी महाराज के पोते धनंजय शर्मा उत्तराखंड के कैंची धाम में चल रही योजनाओं को लेकर भी बेहद खुश हैं. उनका कहना है कि सरकार के द्वारा जिस तरह से वहां पर रहने और आने जाने की व्यवस्था की जा रही है, वह काबिले तारीफ है. उन्होंने कहा कि अगर वहां पर भंडारे की व्यवस्था भी हो जाती है, तो बेहतर रहेगा. क्योंकि देश और दुनिया से वहां पर आने वाले लोग न केवल रहकर ध्यान भजन करेंगे, बल्कि भोजन की व्यवस्था भी अगर होती है तो बेहतर रहेगा. धनंजय शर्मा का कहना है कि इस बारे में उनकी सरकार से भी बात हुई है. वह चाहते हैं कि वह खुद वहां पर दिन के 5 घंटे तक भंडारे का आयोजन करें.

फिरोजबाद में हुआ जन्म: गौर है कि बाबा नीब करौरी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के ग्राम अकबरपुर में सन् 1900 में हुआ था. उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ. 11 साल की उम्र में उनके माता-पिता ने उनका विवाह कर दिया था. बताया जाता है कि उन्होंने साधु बनने के लिए घर छोड़ दिया. लेकिन अपने पिता के अनुरोध पर कुछ समय बाद वैवाहिक जीवन में लौट आए थे. इस समय भारत में ही नहीं विदेशों में भी उनके आश्रम हैं. भारत में उनके आश्रम भारत में कैंचीधाम, भूमियाधार, काकरीघाट, कुमाऊं की पहाड़ियों में हनुमानगढ़ी (सभी नैनीताल जिले में) वृन्दावन (मथूरा उत्तर प्रदेश) ऋषिकेश (देहरादून) लखनऊ (उत्तर प्रदेश), शिमला (हिमाचल प्रदेश), फर्रुखाबाद में खिमासेपुर के पास नीब करौरी आश्रम है. उनका आश्रम ताओस, न्यू मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी स्थित है. बाबा नीब  महाराज का निधन 73 वर्ष की आयु में 11 सितंबर 1973 को वृंदावन, उत्तर प्रदेश में हुआ.

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