Fnd, मुरादाबाद: एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से मरीजों में क्लासिकल अर्थात बीमारी की स्थिति और उसके प्रमुख लक्षण नहीं मिल रहे। ऐसे मरीजों के शरीर में गुड बैक्टीरिया भी कम होते जा रहे हैं। जिला अस्पताल में उपचार के लिए आने वाले मरीजों में 20 फीसदी से अधिक रोगी इस तरह की समस्या से पीड़ित मिल रहे हैं।
चिकित्सकों के अनुसार इन लोगों के प्राइमरी लेवल पर इलाज में प्रोटोकाल का अनुपालन नहीं हुआ और जांच के बगैर एंटीबायोटिक का ज्यादा इस्तेमाल किया गया। शुरुआती जांच में यह भी पता चला कि इन मरीजों ने जहां से इलाज शुरू कराया वहां जांच नहीं कराई और अगर कराई तो नाम मात्र की जबकि, दवाएं ज्यादा लिखी गईं। ऐसे में इन मरीजों के रक्त से लेकर पेशाब तक में संक्रमण की स्थिति बिगड़ गई। कई केस में जब मरीजों को सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हुई तब वे उपचार के लिए अस्पताल पहुंचे।
जिला अस्पताल के सीनियर फिजिशियन डॉ. आशीष सिंह के अनुसार अस्पताल की ओपीडी में हर दिन 450 से अधिक मरीज ऐसे ही आ रहे हैं जो अपनी मर्जी से मेडिकल या आसपास के डॉक्टर से बिना जांच के ही एंटीबायोटिक खा रहे थे। ऐसे मरीजों की जांच के दौरान उनकी समस्या के क्लासिकल लक्षण नहीं मिलते हैं।
कल्चर जांच में भी बीमारी पकड़ में नहीं आती है। इनमें सबसे अधिक दिक्कत खून और पेशाब में संक्रमण वाले मरीजों को हो रही है। ऐसी स्थिति में उपचार में दिक्कत होती है। साथ ही जांच कराने में समय लगता है।
एंटीबायोटिक का असर शरीर में खत्म होने के बाद कल्चर सहित अन्य ब्लड जांच कराई जा रही है। सर्दी जुकाम होने पर मेडिकल स्टोर से ली गई दवा स्वास्थ्य के लिए जहर बन सकती है।
एंटीबायोटिक गुड बैक्टीरिया कम कर बढ़ा रहा बैड बैक्टीरिया
डॉ. आशीष ने बताया कि ओपीडी में आने वाले मरीजों की हिस्ट्री से पता चल रहा है कि हल्का बुखार या फिर सर्दी-जुकाम होने पर मरीज मेडिकल स्टोर से एंटीबायोटिक लेकर उसका सेवन कर लेते हैं।
जबकि, एंटीबायोटिक बड़ी संख्या में अच्छे बैक्टीरिया को भी मार देता है। एंटीबायोटिक खाने से वायरस कभी नहीं मरते हैं। जांच में पता चला है कि जिन लोगों ने एंटीबायोटिक का इस्तेमाल अधिक किया, उनके शरीर में अच्छे बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस, बिफीडोबैक्टीरिएम लोंगुम मिले ही नहीं। जबकि, शत्रु बैक्टीरिया पीएड्रमोनास, क्लेबबिईला बढ़ा मिला।