Fnd, नैनीताल: उत्तराखंड में आरा मशीनों के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है. मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से ऐसे सभी आरा मशीनों की सूची कोर्ट में पेश करने को कहा है, जो प्रतिबंधित वन क्षेत्र से दस किमी की दूरी के अंदर मौजूद हैं. मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने आरा मशीनों के स्थानांतरण को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किए हैं. वहीं, वनाग्नि मामले पर हाईकोर्ट में जंगलों की आग की रोकथाम के लिए एक्शन प्लान पेश किया गया है.
दरअसल, याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि हरिद्वार के सुल्तानपुर आलमपुर में स्थापित आरा मशीनों के स्थानांतरण के संबंध में वन विभाग से कई बार अनुमति मांगी गई थी, लेकिन वन विभाग ने मौजूदा प्रावधानों का हवाला देते हुए इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया. वन विभाग की ओर से इसके पीछे प्रतिबंधित वन क्षेत्र का हवाला दिया गया है. राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी कई दिशा निर्देश राज्य सरकार को दिए हैं, जिसका अनुपालन करते हुए ये निर्देश इनको दिए गए.
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि ये आरा मशीन प्रावधानों के विपरीत स्थापित हैं. आखिर में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि वो ऐसे आरा मशीनों की सूची 22 सितंबर तक अदालत में पेश करें, जो प्रतिबंधित वन क्षेत्र से दस किलोमीटर के अंदर मौजूद हैं. आज इस मामले में पीड़ित कमरुद्दीन और जनहित याचिकाकर्ता रजनी शर्मा की याचिकाओं पर सुनवाई हुई.
उत्तराखंड वनाग्नि मामले पर हाईकोर्ट में सुनवाई: उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग के मामले में स्वतः लिए जाने वाली कई जनहित याचिकाओं समेत अन्य मामलों पर हाईकोर्ट में एक साथ सुनवाई हुई. आज हुई सुनवाई के दौरान वन विभाग ने जंगलों में लगने वाली आग की रोकथाम के लिए एक्शन प्लान पेश करते हुए पूर्व के आदेशों का अनुपालन के लिए कोर्ट से अतिरिक्त समय की मांग की. जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सरकार को अतिरिक्त समय दे दिया है. साथ ही अगली सुनवाई के लिए एक हफ्ते बाद की तिथि नियत की है.
पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार को अहम निर्देश जारी करते हुए कहा था कि वन विभाग में खाली पड़े पदों को 6 महीने में भरने को कहा था. इसके अलावा ग्राम पंचायतों को मजबूत करने, साल भर जंगलों की निगरानी करने के साथ ही कोर्ट ने कहा था कि क्या राज्य की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए कृत्रिम बारिश कराना संभव है. इस पर अपना प्लान पेश करें.
दरअसल, हाईकोर्ट ने ‘इन द मैटर ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ फॉरेस्ट एरिया फॉरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्डलाइफ’ को जनहित याचिका के रूप में स्वतः संज्ञान साल 2018 में लिया था. तब से कोर्ट इस मामले में राज्य सरकार को बार-बार दिशा निर्देश देते आई है, लेकिन तब से अब तक राज्य सरकार इस पर कोई ठोस निर्णय लेने में नाकाम रही है. जो भी निर्णय लिए गए केवल कोर्ट की संतुष्टि के लिए कागजी कार्रवाई के तौर पर लिए गए.
पूर्व में अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली और राजीव बिष्ट ने कोर्ट के सामने उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग के संबंध में कोर्ट को अवगत कराया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रदेश के कई जंगल आग से जल रहे हैं और प्रदेश सरकार इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है. जबकि, हाईकोर्ट ने साल 2016 में जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइडलाइन जारी की थी. कोर्ट ने गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित करने को कहा था, जिस पर आज तक अमल नहीं किया गया.
सरकार जहां आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रही है. जिसका खर्चा बहुत ज्यादा है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है. इसके बजाय गांव स्तर पर कमेटियां गठित की जाए. कोर्ट ने विभिन्न पेपरों में आग को लेकर छपी खबरों का गंभीरता से संज्ञान लिया. कोर्ट ने सरकार से पूछा कि इसको बुझाने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा रहे हैं? कोर्ट को अवगत कराएं.

